किताब
एक पुरानी किताब मिली मुझे आज में याद करने लगा की, इश्क के जमाखर्चे लिखे थे या जज़्बातों की धूल खा रही थी वो किताब। दिनभर बात नहीं हो पाई तो मुझे लगा मनाना पड़ेगा कविता शायरी कुछ तो खिलाना पड़ेगा, फिर भी मुझपर बिलकुल गुस्सा नहीं थी वो किताब। खोल कर देखा जब मैने पहले कुछ पन्ने सफ़ेद थे रंग से, थोड़ा और जब गया में आगे तो शाही के बिना ही जिंदा थी वो किताब। कलम रख रख कर गिरा हुआ दाग और एक फटे हुए पन्ने की शिकन मिली आख़िर में किसिके इंतजार मे उम्र कट जाती हैं वैसे ही एक चिट्ठी के जवाब मे, कल भुला कर, कल गवा करने के लिए तैयार थी वो किताब।
प्यार या गम
खुद की एक जगह होनी चाहिए ,जहा कोई तंग ना करे
चाहे जितना वक़्त गुजार सके हम
प्यार में सही या गम में सही।
WhatsApp, Instagram को सब पता रहता है
कभी उनसे बात कर लेनी चाहिए
प्यार में सही या गम में सही।
सामने वाले की बात सुननी चाहिए ,
कभी दूसरा मौका भी देना चाहिए
प्यार में सही या गम में सही।
त्यौहार तो सब मनाते है
कभी यूंही party दे देनी चाहिये
प्यार में सही या गम में सही।
प्यार अगर मांगते ही मिल गया , तो क्या खाक प्यार किया
दिल अगर टूटा नहीं , तो क्या खाक गम हुआ।
हम जैसे की कहानी भी सुन लेना कभी,
प्यार में सही या गम में सही।
कल ही की तो बात है,
आख़री पन्ना पलटाया calender का,
आज महीनें गिन रहा हूं।
वो पहली बार मिली,
या जब छोड़ के चली गयी।
कई साल बीत गये,
याद नहीं आ रहा,
आज फिरसे आख़री महीना ख़त्म हो रहा है,
पर नया calender ख़रीदने का मन नहीं होता |
मौसम
मौसम मरियल सा लग रहा है आज, धूप में न जान है, न हवा में भागदौड़। न कोई ख़ुश ख़बर आयी आज, और दुखी होने की भी कोई वज़ह मिल रही। पड़ोसी वालों ने न कुछ बताया, रिश्तेदारों ने न कुछ पूछा, अख़बारों ने भी न कुछ सुनाया, मौसम मरियल सा लग रहा है आज। पेट की बजाय दोपहर ख़ाली ख़ाली है। बाहर जाते तो कहाँ जाते। बारिश का वक़्त है नहीं, पतझड़ फिर से होनी नहीं। कुदरत ने छुट्टी ली है आज, तभी मौसम मरियल सा लग रहा है, धुप में न जान है, न हवा में भागदौड़।
No comments:
Post a Comment